एक भिखारी रोज एक दरवाजें पर जाता और भिख के लिए आवाज लगाता और जब घर का मालिक बाहर आता तो उसे गंदीगंदी गालिया और ताने देता, मर जाओ, काम क्यूं ...
एक दिन सेठ बड़े गुस्सें में था. शायद व्यापार में घाटा हुआ होगा, वो भिखारी उसी वक्त भीख मांगने आ गया, सेठ ने आओ देखा ना ताओ, सीधा उसे पत्थर से दे मारा, भिखारी के सर से खून बहने लगा. फिर भी उसने सेठ से कहा ईश्वर तुम्हारें पापों को क्षमा करें और वहां से जाने लगा. सेठ का थोड़ा सा गुस्सा कम हुआ, तो वह सोचने लगा मैंने उस भिखारी को पत्थर से भी मारा पर उसने बस दुआ ही दी. इसके पीछे क्या रहस्य है .मुझे जानना पड़ेगा और वह भिखारी के पीछे चलने लगा.
भिखारी जहाँ भी जाता सेठ उसके पीछे जाता, कही कोई उस भिखारी को कोई भीख दे देता तो कोई उसे मारता, जालिल करता गालियाँ देता, पर भिखारी किसी को कुछ ग़लत नहीं कहता बस इतना ही कहता, ईश्वर तुम्हारे पापों को क्षमा करें. अब अंधेरा हो चला था. भिखारी अपने घर लौट रहा था, सेठ भी उसके पीछे-पीछे था. भिखारी जैसे ही अपने घर लौटा, एक टूटी फूटी खाट पर एक बुढिया सोई हुई थी. जो भिखारी की पत्नी थी. जैसे ही उसने अपने पति को देखा तो उठ खड़ी हुई और भीख का कटोरा देखने लगी. उस भीख के कटोरे मे मात्र एक आधी बासी रोटी थी. उसे देखते ही बुढिया बोली बस इतना ही और कुछ नही, और ये आपके सिर पर चोट केसी?
भिखारी बोला, हाँ बस आज इतना ही ज़्यादा किसी ने कुछ नही दिया बस सबने गालिया ही दी, पत्थर मारें, इसलिए ये सिर फूट गया. भिखारी ने फिर कहा सब अपने ही पापों का परिणाम हैं. याद है ना तुम्हें, कुछ वर्षो पहले हम कितने अमिर हुआ करते थे. क्या नही था हमारे पास. सब कुछ होते हुए भी हमने कभी दान नही किया. याद है तुम्हें वो अंधा भिखारी? यह बात कहते ही बुढिया की आँखों में आँसू आ गए और भिखारी ने कहा हाँ मुझे अच्छी तरह से याद हैं.
कैसे हम उस अंधे भिखारी का मजाक उडाते थे.कैसे उसे रोटियों की जगह खाली कागज रख देते थे, कैसे हम उसे जालिल करते थे, कैसे हम उसे कभी-कभी मार और धकेल भी देते थे, अब बुढिया ने कहा हाँ सब याद है मुझे. कैसे मैंने भी उस अन्धे भिखारी को राह नही दिखाई और घर के बनें नालें में गिरा दिया था. जब भी वह हमसे रोटिया मांगता मैंने बस उसे गालियाँ ही दी.एक बार तो उसका कटोरा तक फेंक दिया. और वो अंधा भिखारी हमेशा कहता था. तुम्हारे पापों का हिसाब ईश्वर करेंगे.उन दोनो को अपनी की हुई पुरानी हरकतें सब याद की और कहा -आज उस भिखारी की बद्दुआ और हाय हमें ले डूबी.
सेठ चुपके चुपके सब यह सब बातें सुन रहा था. उसे अब सारी बात समझ आ गयी थी. बुढे -बुढिया ने आधी रोटी को दोनो ने मिलकर खाया, और भगवान का लाख लाख शुक्र हैं. यह कह कर सो गये.अगले दिन वह भिखारी भिख मांगने सेठ के यहाँ गया, सेठ ने पहले से ही रोटियाँ निकाल कर रखी थी, उसने वह रोटियाँ भिखारी को दी और हल्की से मुस्कान भरे स्वर में कहा, माफ करना बाबा, गलती हो गयी, भिखारी ने कहा, ईश्वर तुम्हारा भला करे. और वो वहाँ से चला गया.
सेठ को एक बात समझ आ गयी थी. इंसान तो बस दुआ-बद्दुआ ही देते है. लेकिन दुआ और बदुआ पूरी तो ईश्वर के अनुसार ही होती हैं. हर किसी को अपने कर्मों का फल ज़रूर मिलता हैं. इसलिए आप जब भी बोले मुख से अच्छे ही शब्द बोलें. और कोशिश की जब आपको ग़ुस्सा आए तो आप कुछ बोले ही नहीं, नहीं तो आप ग़ुस्से में सामने वाले को बहुत कुछ कह जाते हो जिसका असर आप पर नहीं होता पर सुनने वाले पर ज़्यादा होता हैं. तो कोशिश करो की जब भी बोले अच्छा ही बोलें क्योंकि परमात्मा हम सब को देख रहा हैं.
हो सके तो बस अच्छा करें, वो दिखता नही है तो क्या हुआ
सब का हिसाब पक्का रहता है उस ऊपर वाले के पास
सदैव प्रसन्न रहिये। जो प्राप्त है, पर्याप्त है।
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