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आनंद से जीने का एक सुत्र -75

जिन्दगी में अकेले आए हैं तो अकेले ही जाना पड़ेगा। यही जीवन का सत्य हैं इसको जीने का एक मात्र सूत्र क्या हैं ?  एकांत आनंद से जीने का एक सुत्र...

जिन्दगी में अकेले आए हैं तो अकेले ही जाना पड़ेगा। यही जीवन का सत्य हैं इसको जीने का एक मात्र सूत्र क्या हैं ? 
एकांत आनंद से जीने का एक सुत्र है। इस सुत्र में आनंद के सिवाय और कुछ भी नही है । दुख, कष्ट, भय, अंहकार, निराशा , लडाई, झगडा कुछ भी नही है। केवल कुछ है तो वह है आनंद।

तुम भिड में भी रहो तो ऐसे रहो। जैसे तुम अकेले हो। कहीं भी रहो। ऐसे रहो, जैसे तुम बिल्कुल अकेले हो। न कोई साथी संगी ना कोई अपना रिश्तेदार। परिवार में भी रहो, तो अकेले रहो। एक क्षण को भी यह सूत्र हाथ से मत जाने देना। एक क्षण को भी अपने भित्तर यह भांति पैदा होने मत देना कि तुम्हारे साथ और भी कोई है। तुम अकेले नहीं हो।

यहां ना कोई साथ है। ना कोई साथ हो सकता है। यहां सब अकेले हैं। अकेलापन आत्यंतिक है। इसे बदला नहीं जा सकता। थोडी बहुत देर के लिये हम भुल सकते है, पर उस सत्यता को हम बदला नहीं सकते। और भुल जाना तो नामुमकिन हैं। एक प्रकार का नशा हैं। कुछ देर के लिये भुल का नशा छा सकता है। पर नशा उतरा तो सत्यता हमारे सामने आ जायेगा। तुम भुल जाओ पर कुछ पल बाद सत्यता सामने आयेगा ही। इससे हम भाग नहीं सकते। कोई शराब पीकर भुलाता है। कोई धन की दौड़ में पड़कर भुलाता है। कोई पद के लिए दीवाना होकर भुलाता है। कैसे भी तुम भुलाओ। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन थोड़ी देर के लिये ही भुल सकते हो। सदा के लिये नही भुल सकते। और जब भी नशा उतरेगा। तुम्हारा भ्रम टुटेगा तब तुम अचानक अपने आपको अकेला पाओगे।

सही इंसान वह है। जो अपने अंदर के अकेलेपन में  भजन - सिमरन में खोया रहता है। वह अकेला है और भुलाता नहीं अपने अकेलेपन को। भुलाना तो दूर, वह अपने अकेलेपन में अपने भजन ,सिमरन में  डूब जाता है। उस अकेलेपन का रस लेता है। वह प्रतीक्षा में रहता है कि कब मौका मिले और अकेलेपन में डुब जाये। वह अकेले पन में डुबकर आनंदमयी हो जाना चहाता है। आँखे बंद करके अकेलेपन के बसन्त में झुमना चहाता है। वही नियति है । वही स्वभाव है। वही मेरी पहचान है ।

एकांत के द्वारा एक का अंत कर , भगवान में खुद विलीन करना ही सकरात्मक अंत हैं। स्करात्मक एक यानि हमारी आत्मा निरंतर हैं निरंतर ही अंतहीन यात्रा हैं। अलग अलग चरणों से होते हुए जो अनत काल तक चलती रहती हैं। हमें एकांत के सु अवसर का लाभ उठाना चाहिए , आपने नकरात्मक ऊर्जा को सकरात्मक अंत तक ले जाना हैं। रास्ता मुश्किल हैं लेकिन मुक्ति उसी तरफ हैं।          

दूसरों से पहचान बनाने से कुछ भी नही होगा। अपने से बनाई गयी पहचान का अस्तित्व है। दूसरों को जानने से क्या होगा ? अपने को ही न जाना और सबको जान लिया, इस जानने का कोई मूल्य नहीं है। मूल में तो अज्ञान ही रह गया। http://www.khushikepal.com/

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