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मन की सफाई- 73

हैलो दोस्तों दिवाली के इस शुभ अवसर पर आप सब को तह दिल से बहुत बहुत शुभ कामनाये, आप सब दिन दोगनी , रात चोंगनी तर्की करे। और हमेशा हस्ते मुस्क...


हैलो दोस्तों दिवाली के इस शुभ अवसर पर आप सब को तह दिल से बहुत बहुत शुभ कामनाये, आप सब दिन दोगनी , रात चोंगनी तर्की करे। और हमेशा हस्ते मुस्कुराते रहे। दिवाली का त्योहार एक खुशीयो  और प्यार का त्योहार है। इसे सब लोग अपने अपने ढंग से मनाते है। कोई किसी को  महंगे - महंगे गिफ्ट दे कर। तो कोई पार्टिया करता है.दिवाली का सही मतलब है कि हर किसी के घर में खुशियों का दिया जले , कोई भी भूखा न रहे। ऐसी दिवाली तो हमें हर रोज मनानी चाहिए कि किसी गरीब के घर में कोई भूखा न सोये। इंसान तो इंसान , जानवर तक का हमें ध्यान रखना चाहिए जो बेजूबान कुछ बोल नहीं सकते। उन्हे भी खुशी से जीने का अधिकार हैं लेकिन हम ऐसा नहीं करते। अगर उन बेजूबान जानवरों का हम ध्यान रखे तो आपको पता भी नहीं कि आपको कितनी दुआए मिलेगी । 

एक बार तीन दोस्त भंडारे में भोजन कर रहे थे. उनमें से पहले के मन में आया - काश हम भी ऐसे भंडारा कर पाते! दूसरा दोस्त बोला-हाँ. यार सैलरी के आने से पहले ही इतने खर्चे हैं कि पता ही नहीं लगता।  तीसरा दोस्त बोला - खर्चे. इतने सारे होते है तो कहाँ से करें भंडारा!
 उनके पास बैठे एक महात्मा भंडारे का आनंद ले रहे थे। और वो उन तीनों दोस्तों की बातें भी सुन रहे थे, महात्मा उन तीनों से बोले -बेटा भंडारा करने के लिए धन नहीं केवल अच्छे मन की जरूरत होती है! हर कोई अपने अपने ढंग से करता है, कोई तन से , कोई मन से  और कोई धन से करता हैं। वह तीनों आश्चर्यचकित होकर महात्मा की ओर देखने लगे!  महात्मा ने सभी की उत्सुकता को देखकर हंसते हुए कहा - बच्चों तुम   रोज़ 5-10 ग्राम आटा लो और उसे चीटियों के स्थान पर खाने के लिए रख दो, देखना अनेकों चींटियां-मकौड़े उसे खुश होकर खाएँगे। बस हो गया भंडारा!
 चावल-दाल के कुछ दाने लो, उसे अपनी छत पर बिखेर दो और एक कटोरे में पानी भर कर रख दो, चिड़िया-कबूतर आकर खाएंगे। यह कितना बड़ा पुन का काम हैं। इससे बड़ा भंडारा क्या हो सकता हैं 
गाय और कुत्ते को रोज़ एक-एक रोटी खिलाओ, और घर के बाहर उनके पीने के लिये पानी भर कर रख दो। क्या यह भंडारे से कम हैं  
 
ईश्वर ने सभी के लिए अन्न का प्रबंध किया है। ये जो तुम और मैं यहां बैठकर पूड़ी-सब्जी का आनंद ले रहे हैं ना, इस अन्न पर ईश्वर ने, हमारा नाम लिखा हुआ है! बच्चों तुम भी जीव-जन्तुओं के भोजन का प्रबन्ध करने के लिए जो भी व्यवस्था करोगे, वह भी उस ऊपर वाले की इच्छा से ही होगा, यही तो है भंडारा!  महात्मा बोले --- बच्चों जाने कौन कहाँ से आ रहा है और कौन कहाँ जा रहा है, किसी को भी पता नहीं होता और ना ही किसको कहाँ से क्या मिलेगा या नहीं मिलेगा यह पता होता, बस सब ईश्वर की माया है! कोई किसी को कुछ नहीं खिलाता , सब अपनी अपनी किस्मत का खाते हैं  
 तीनों युवकों के चेहरे पर एक अच्छी सुकून देने वाली खुशी छा गई। उन्हें भंडारा खाने के साथ-साथ भंडारा करने का रास्ता भी मिल चुका था! ईश्वर के बनाये प्रत्येक जीव-जंतु को भोजन देने के ईश्वरीय कार्य को जनकल्याण भाव से निस्वार्थ करने का संस्कार हमें बचपन से ही मिल जाता है। हमें गर्व करना चाहिए अपनी संस्कृति पर! इंसान इतना कमाता हैं पर उसका पेट नहीं भरता , और  उसकी कभी इच्छा खतम ही नहीं होती और जानवर न कमा कर भी कभी भूखा नहीं सोता। भगवान ने सब के लिए सब व्यवस्था की हुई है।  


हर रोज दिवाली मनाओ, खुशी से मनाओ, पुरानी बातों को भूल कर नई जिन्दगी कि शुरुआत करो। जिन्दगी के हर एक पल को खुशी से जियो।  घर की सफाई के साथ साथ मन की भी सफाई करो। 

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