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गुरु घर का लंगर- 67

एक बार गुरु नानक देव जी एक नगर में गए। वहाँ सभी  नगर वासी इकठे हो गए। वहाँ एक महिला भक्त श्री गुरु नानक देव जी से कहने लगी- महाराज! मैंने तो...


एक बार गुरु नानक देव जी एक नगर में गए। वहाँ सभी  नगर वासी इकठे हो गए। वहाँ एक महिला भक्त श्री गुरु नानक देव जी से कहने लगी- महाराज! मैंने तो सुना है, आप सभी के दुःख दूर करते हो। मेरे भी दुःख दूर करो, मैं बहुत दुखी हूँ। मैं तो आप के गुरुद्वारे में रोज 50 रोटी अपने घर से बना कर बाँटती हूँ, फिर भी दुखी हूँ। ऐसा क्यों ?

गुरु नानक देव जी ने कहा- कि तू दुसरों का दुःख अपने घर लाती हो, इस लिए दुखी हो। वो कहने लगी - महाराज! मुझे कुछ समझ नहीं आया, मुझ अज्ञानी को ज्ञान दो।  गुरु नानक देव जी कहने लगे- तूं 50 रोटी गुरु द्वारे में बांटती तो हो।  पर बदले में क्या ले जाती हो ? क्या तुम जानती हो  वो कहने लगी- सिर्फ आप के लंगर के सिवा और कुछ भी नहीं। (लंगर में बंट रहा  प्रसाद)
गुरु नानक देव जी कहने लगे- लंगर का मतलब है एक रोटी खाना ओर अपने गुरु का शुकर मनाना। पर तूं तो रोज बड़ी-बड़ी थैलियों में दाल मखनी , मटर पनीर, रायता, खीर और 10-15 रोटी भर-भर के ले जाती हो। तीन दिन वो लंगर तेरे घर में रहता है। तू अपने घर में सभी परिवार को वो खिलाती हो। तू नहीं जानती कि भगवान और गुरु घर के लंगर की रोटी के एक टुकड़े में भी गुरु जी की वो ही कृपा रहती है, जितना गुरु जी के भंडारे में होती है।

तू कहती है मेरे बच्चे घर पर हैं। उनके लिए, मेरे पोतों के लिए, मेरी बहू के लिए, मेरे बेटे के लिए इन सब के लिए भरपूर लंगर ले जाना है। तू उन सब के मोह ,माया में फस कर लालची हो गई और  सब को ये कहकर तूं भर - भर कर लंगर अपने घर ले जाती है। पर तू ये नहीं जानती कि गुरुद्वारे में इस लंगर को चखने से कितनों के दुःख दूर होने थे। पर तूने अपने सुख के लिए दुसरों के दुख दूर नहीं होने दिए। इसी लिए तू उनके सारे दुख अपने घर ले जाती हो और दुखी रहती हो। जो मंदिर और गुरुद्वारा से लंगर को अपने घर बांध बांध कर ले जाते है । वह  और लोगों का दुख इकठा कर अपने घर मे ले आते हैं ।   

तेरे दुख तो दिन दुगने रात चोगुने बढ़ रहे हैं। उसमें हम क्या करें बता ?
उसकी आँखों से परदा हट गया।और वो जारो-जार रोने लगी और बोली- महाराज मैं अंधकार में डूबी थी। मुझे क्षमा करो, अपने चरणों से लगाओ। अब से मैं एक ही चम्मच का लंगर करूंगी। गुरु नानक देव जी ने समझाया कि इंसान अपने दुःख खुद खरीदता है, पर उसे कभी पता नहीं चलता। इसलिए लंगर में अपनी भूख जितना ही खाना चाहिए और लंगर प्रसाद को भर भर कर घर कभी नहीं लाना चाहिए। प्रसाद का एक कण भी कृपा से भरपूर होता है। इसिलए ध्यान अवश्य रखें ,इतना लालच जीवन में अच्छा नहीं । साथ में कुछ नहीं जाना । खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाना हैं । 
घमंड -  कितना घमंड हैं , आज के इंसान में , क्या समझता है खुद को , आखिर किस बात का घमंड हैं इंसान को ,
सुनदर्ता का  घमंड - एक मामूली दुर्घटना में दो मिनट में ही इंसान की सुंदरता गायब हो जाती है । वो रोगी बन जाता हैं । चमड़ी देखने लायक नहीं होती । 
पैसे का घमंड - दो मिनट में इंसान का व्यपार ठप हो जाता हैं , पाई पाई का मोहताज बन जाता है , 
औलाद का घमंड - बेटा  हो या बेटी कोई गलत कदम उठा ले , तो सारा अहंकार धरा का धरा ही रह जाएगा । 
एक सुई तक भी साथ नहीं जाएगी , बस जाता हैं  तो नाम आपका , काम आपका ,अच्छे कर्म , अच्छे गुण , आपका प्यार , आपका अच्छा व्यवहार , आपकी शुद वाणी । 
छोड़ दो एक दूसरे को नीचा दिखाना । छोड़ दो दूसरों कि सफलता से जलना । 
छोड़ दो  दूसरों  के धन से जलना ।  छोड़ दो  दूसरों की चुगली करना । छोड़ दो लालच करना । 
अगर आप नकरात्मक  सब चीजों दे दूर  रहते है और अच्छे कर्म करते है , तो भगवान हमेशा आपके साथ हैं और आपको कभी  भी कोई दुख , बीमारी , रोग , संकट नजदीक नहीं आ सकता । हमे अपने हीसे का ही खाना चाहिए  , लालच  कभी नहीं करना चाहिए ।  हर एक खुशी के पल को , हमेशा खुशी से जीना चाहिए 

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