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किस्मत की आदत -- 48

कृष्ण और सुदामा का प्रेम बहुत गहरा था। प्रेम भी इतना कि कृष्ण, सुदामा को रात दिन अपने साथ ही रखते थे। कोई भी काम होता, दोनों साथ-साथ ही करते...




कृष्ण और सुदामा का प्रेम बहुत गहरा था। प्रेम भी इतना कि कृष्ण, सुदामा को रात दिन अपने साथ ही रखते थे।
कोई भी काम होता, दोनों साथ-साथ ही करते। एक दिन दोनों वनसंचार के लिए गए और रास्ता भटक गए। भूखे-प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे। पेड़ पर एक ही फल लगा था।कृष्ण ने घोड़े पर चढ़कर फल को अपने हाथ से तोड़ा। कृष्ण ने फल के छह टुकड़े किए और अपनी आदत के मुताबिक पहला टुकड़ा सुदामा को दिया। सुदामा ने टुकड़ा खाया और बोला, बहुत स्वादिष्ट! ऎसा फल कभी नहीं खाया। एक टुकड़ा और दे दो । दूसरा टुकड़ा भी सुदामा को मिल गया। सुदामा ने एक टुकड़ा और कृष्ण से मांग लिया। इसी तरह सुदामा ने पांच टुकड़े मांग कर खा
लिए। जब सुदामा ने आखिरी टुकड़ा मांगा, तो कृष्ण ने कहा, 'यह सीमा से बाहर है। आखिर मैं भी तो भूखा हूं। मेरा तुम पर प्रेम है, पर तुम मुझसे प्रेम नहीं करते। और कृष्ण ने फल का टुकड़ा मुंह में रख लिया।

मुंह में रखते ही कृष्ण ने उसे थूक दिया, क्योंकि वह कड़वा था। कृष्ण बोले, तुम पागल तो नहीं, इतना कड़वा फल कैसे खा गए? उस सुदामा का उत्तर था, 'जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाने को मिले, एक कड़वे फल की शिकायत कैसे करूं? सब टुकड़े इसलिए लेता गया ताकि आपको पता न चले। दोस्तों जँहा मित्रता हो वँहा संदेह न हो, 
ईश्वर में विश्वास  रखो । एक संत कुएं पर स्वयं को लटका कर ध्यान किया करते थे । और उनका विश्वास  था कि जिस दिन यह जंजीर टूटेगी ,तो मुझे ईश्वर के दर्शन हो जाएंगे । उस संत से पूरा गाव प्रभावित था । सभी उनकी भक्ति ,उनके तप की तारीफ़े करते थे । एक व्यक्ति के मन में इच्छा हुई कि मैं भी ईश्वर के दर्शन करुँ । वह रस्सी से पैर को बांध कर कुएं में लटक गया और कृष्ण जी का सच्चे मन से  ध्यान करने लगा  । जब रस्सी टूटी , उसे कृष्ण ने अपनी गोद में उठा लिया और दर्शन भी दिए । तब व्यक्ति ने पूछा - आप इतनी जल्दी मुझे दर्शन देने क्यू चले आए ? जब कि वे संत महात्मा तो वर्षों से आपकी भक्ति , तप और पूजा करके आपको बुला रहे है । 
कृष्ण जी बोले -वो कुएं पर लटकते जरूर है , किन्तु पैरों को लोहे की जंजीर से बांध कर । उन्हे मुझ से ज्यादा जंजीर पर विश्वास था । तुझ में और उनमे बहुत फ़र्क है । तुझे खुद से ज्यादा, मुझ पर विश्वास है । इस लिए मैं आ गया । जरूरी नहीं कि दर्शन में वर्षों । आपकी शरणा गति आपको ईश्वर के दर्शन अवश्य कराएगी और शीघ्र ही कराएंगी । प्रश्न - केवल इतना है कि आप उन पर कितना विश्वास करते हो । ईश्वर सभी प्राणियों के ह्रदय में स्थित है। उन्हे सच्चे मन से याद करने की जरूरत है ।
भगवान कहते हैं । उदास मत हो मैं तेरे साथ हूँ । सामने नहीं तेरे आसपास हूँ । पलको को बंद कर और दिल से याद कर , मैं कोई और नहीं , तेरा विश्वास हूँ । 
किस्मत की एक आदत है कि वो पलटती जरुर है । और जब पलटती है, तब सब कुछ पलटकर रख देती है।
इसलिये अच्छे दिनों मे अहंकार न करो और खराब समय में थोड़ा सब्र करो. 

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