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आत्मा की आवाज़ -56

एक छोटी मासूम गुड़िया बिस्तर से उठी और अपना गुल्लक ढूँढने लगी. और अपनी तोतली आवाज़ में उसने माँ से पूछा ? माँ, मेला गुल्लक कहाँ गया? माँ ने आल...

एक छोटी मासूम गुड़िया बिस्तर से उठी और अपना गुल्लक ढूँढने लगी. और अपनी तोतली आवाज़ में उसने माँ से पूछा ? माँ, मेला गुल्लक कहाँ गया? माँ ने आलमारी से गुल्लक उतार कर दे दिया और अपने काम में व्यस्त हो गयी. मौका देखकर गुड़िया चुपके से बाहर निकली और पड़ोस के मंदिर जा पहुंची.
सुबह-सुबह मंदिर में भीड़ अधिक थी. हाथ में गुल्लक थामे वह किसी तरह से बाल-गोपाल के सामने पहुंची और पंडित जी से कहा- बाबा, जला कान्हा को बाहल बुलाना! अरे बेटा कान्हा जी अभी सो रहे हैं बाद में आना,पंडित जी ने मजाक में कहा. कान्हा उठो.जल्दी कलो. बाहल आओ. गुड़िया चिल्ला कर बोली. हर कोई गुड़िया को देखने लगा.

पंडित जी, प्लीज. प्लीज कान्हा को उठा दीजिये. क्या चाहिए तुमको कान्हा से.
मुझे चमत्काल चाहिए… और इसके बदले में मैं कान्हा को अपना ये गुल्लक भी दूँगी.इसमें 100 लूपये हैं .कान्हा इससे अपने लिए माखन खरीद सकता है. प्लीज उठाइए न उसे. इतने देल तक कोई छोता है क्या?
चमत्कार!, किसने कहा कि कान्हा तुम्हे चमत्कार दे सकता है? मम्मा-पापा बात कह लहे थे कि भैया के ऑपरेछन के लिए 10 लाख लूपये चाहिए. पल हम पहले ही अपना गहना जमीन सब बेच चुके हैं.और नाते-रिश्तेदारों ने भी फ़ोन उठाना छोड़ दिया है. अब कान्हा का कोई चमत्काल ही भैया को बचा सकता है.

पास ही खड़ा एक व्यक्ति गुड़िया की बातें बड़े ध्यान से सुन रहा था, उसने पूछा, “बेटा क्या हुआ है तुम्हारे भैया को?
 भैया को ब्लेन ट्यूमल है.  ब्रेन ट्यूमर?  जी अंकल, बहुत ख़तरनाक बीमारी होती है । व्यक्ति मुस्कुराते हुए बाल-गोपाल की मूर्ती निहारने लगा. उसकी आँखों में श्रद्धा के आंसूं बह निकले. रुंधे गले से वह बोला, अच्छा-अच्छा तो तुम वही लड़की हो. कान्हा ने बताया था कि तुम आज सुबह यहाँ मिलोगी. मेरा नाम ही चम्त्कार है. लाओ ये गुल्लक मुझे दे दो और मुझे अपने घर ले चलो. वह व्यक्ति लन्दन का एक प्रसिद्द न्यूरो सर्जन था और अपने माँ-बाप से मिलने भारत आया हुआ था. उसने बेटी को बुलाया और कहा मुझे तुम उस गुल्लक में पड़े मात्र सौ रुपय मुझे दे दो । मै तुम्हारे भाई का  ब्रेन ट्यूमर का ऑपरेशन कर दूंगा इतने में लड़की बहुत खुश हुई और उसके भाई का ऑपरेशन भी हो गया  और गुड़िया के भैया को ठीक भी कर दिया.उसकी खुशी का पारा ही नहीं था  कि उसका भाई ठीक हो गया। और वह फिर कान्हा जी के पास गई शुक्रिया अदा करने के लिए और घर आते ही देखती उसकी गुलक पूरे पैसों से भरी पड़ी है । वह बहुत खुश हुई ।  भगवान तो सब का है लोग अफसोस से कहते है कि कोई किसी का नहीं , लेकिन कोई यह नहीं सोचता कि हम किसके हुए । 
प्यार बांटा तो रामायण लिखी गई और सम्पत्ति बांटी तो महाभारत।
कल भी यही सत्य था आज भी यही सत्य है!!
भाव बिना बाजार में, वस्तु मिले ना मोल,
तो भाव बिना "हरी " कैसे मिले, जो है अनमोल.
इस संसार में भूलों को माफ करने की क्षमता सिर्फ तीन में है।
माँ, महात्मा,और परमात्मा.

3 comments

  1. ईश्वर तो हमारे चारो तरफ अपने गुणों के साथ उपस्थित हैं परंतु हमारे पास ईश्वर को देखने का दृष्टि नहीं है जी.

    ईश्वर को पहचानने का एक सही तरीका है कि जब कोई नि:स्वार्थ भाव से हमारे जीवन जीने में सहायता करता है तो वह हमारे लिए ईश्वर ही है.

    हम इंद्रियों के विषयों और अपने मन से भाग नहीं सकते हैं उनके साथ साथ रहना है. बस संसार को देखने का दृष्टिकोंण बदलना पड़ेगा.

    हमारे बेदों और पुराणों में कहा गया है कि आ़ंख का विषय देखना है परंतु क्या देखें ?इसका निर्णय हमारे हाथ में है.हम सभी में शरीरों में ईश्वर रूपी भद्र पुरूष को देखना है, कान का विषय सुनना है परंतु क्या सुनें? सभी के शरीरों में बैठे हुए भद्र पुरूष के गुणों को सुनना है.जीभ का विषय बोलना और स्वाद लेना है परंतु क्या बोलें और क्या खायें? सभी के शरीरों में उपस्थित ईश्वर रूपी भद्र पुरूष के गुणों का गान अथवा किन्तु करना है, नासिका का विषय गंध लेना है परंतु कैसा गंध लेना है? संसार के सभी शरीरों में उपस्थित भद्र पुरूष का सुगंध लेना है और त्वचा का विषय स्पर्श है तो सभी शरीर में उपस्थित भद्र पुरूष का स्पर्श करना है.

    इस तरह हम हमेशा ईश्वर के यादों में अपने समय को व्यतीत कर सकते हैं ताकि शरीर की मृत्यु के बाद भी ईश्वर का साथ बने रह परंतु इसके लिए अभ्यास जरूरी है अंत समय में जो भाव होता है आत्मा फिर उसी शरीर में वापस आता है . हमारे जीवन की यात्रा अनंत है जब तक संसार में आने की इच्छा समाप्त नहीं हो जाता है इसके लिए हमें अपने अपूर्णता को समाप्त कर पूर्ण पुरूष ईश्वर में मिल जाना है

    जरा सोचिए यानि मंथन किजीए क्यों कि अपने विचारों पर मंथन जरूरी है. दैत्य और दानव एक विचाधारा ही तो है.

    इसी ईश्वर को सगुण ब्रह्म कहते हैं जी.

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  2. Thank you so much 🙏🏻😊🙏🏻

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