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जियो और जीने दे - 46

एक साधु एक गाँव से गुजरते थे। वहाँ एक वेदी पर एक बकरा काटा जा रहा था। बड़ा शोरगुल मच रहा था। बड़ी भीड़भाड़ थी। लोग बड़े आनंदित थे—इनको लोग...


एक साधु एक गाँव से गुजरते थे। वहाँ एक वेदी पर एक बकरा काटा जा रहा था। बड़ा शोरगुल मच रहा था। बड़ी भीड़भाड़ थी। लोग बड़े आनंदित थे—इनको लोग धार्मिक कृत्य समझते रहे हैं।
साधु ने पूछा काटने वाले से कि जरा एक मिनट, एक मिनट रुक जाओ, मुझे एक छोटी—सी बात का जवाब दे दो, इस बकरे को क्यों काटा जा रहा है? ब्राह्मण कुशल था, होशियार था—ब्राह्मण ही था, पंडित था—उसने कहा कि इसलिए काटा जा रहा है कि इस बकरे की आत्मा को स्वर्ग मिलेगा। धर्म में जो बलि जाता है, स्वर्ग जाता है।

तो साधु ने कहा—फिर तू अपने बाप को क्यों नहीं काटता? अपने को क्यों नहीं काटता? ला, तलवार दे, तेरी गर्दन उतार देते हैं। तू अपने को ही काट ले, जब स्वर्ग जाने का इतना सरल उपाय है—और बकरा बेचारा जाना भी नहीं चाहता, वह कह रहा है कि मुझे नहीं जाना! जबर्दस्ती बकरे को स्वर्ग भेज रहा है! और तुझे जाना है।

तो वह ब्राह्मण घबराया। उसने सोचा नहीं था कि बात इस ढंग से हो जाएगी। साधु के पास बातों के ढंग बदल जाते हैं। कुछ और उसे सूझा नहीं तो साधु के चरणों में गिर पड़ा। साधु ने कहा—यह अब कुछ मतलब की बात हुई। ऐसा ही तू अगर चरणों में गिरे परमात्मा के, परम सत्य के—चरणों में गिरने की बात है—तो सब हो जाएगा। एक बेजूवान जानवर पर अत्याचार कर रहे हो । अगर स्वर्ग जाने का रास्ता इतना आसान है तो क्या कोई अपनी बली देता , नहीं । तो उस बेजूबान की क्यूँ .
खुद जियो और दूसरों को जीने दो .

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