अहंकार को छोड़ो, क्योंकि अहंकार ही गर्मी है एक बार एक सूफी संत हुए--सूफी संत खैराबादी; वे अपने गुजारे के लिए सब्जी बेचा करते थे। भोले आदम...
अहंकार को छोड़ो, क्योंकि अहंकार ही गर्मी है
एक बार एक सूफी संत हुए--सूफी संत खैराबादी; वे अपने गुजारे के लिए सब्जी बेचा करते थे। भोले आदमी थे,तो बहुत से लोग उन्हें खोटा सिक्का दे जाते थे। यहीं तक नहीं, कुछ चालाक आदमी तो यह खोटा सिक्का तुम्हारी दुकान से ही हमारे पास आया है, यह कह कर, उनसे बदलवा भी ले जाते थे। लेकिन खैराबादी उसे चुपचाप स्वीकार कर लेते। और वह किसी से कुछ नहीं कहता और जब भी कोई खोटा सिक्का उनको दे जाता, तो लोग हमेशा देखते कि-- जब भी कोई खोटा सिक्का देता, तो वे आकाश की तरफ देखते और हाथ की मुठी में बंद कर लेते हैं
यह जिंदगी भर की उनकी आदत थी। फिर उनका अंत समय आया, तब उन्होंने प्रार्थना की, ‘हे भगवान सारी जिंदगी मैं खोटे सिक्के स्वीकार करता रहा हूँ । किसी का भी खोटा सिक्का लेने से मैंने इनकार नहीं किया। मैं भी एक खोटा सिक्का हूं और अब तुम्हारे पास आ रहा हूं, मुझे वापस न लौटा देना!तब लोगों ने समझा कि वे जिंदगी भर क्यों आकाश की तरफ आंख उठा लेते थे--जब कोई खोटा सिक्का उनको दे जाता था। तब यही प्रार्थना वे जीवन भर करते रहे ‘हे भगवान सारी जिंदगी मैंने खोटे सिक्के स्वीकार किए हैं। किसी का भी खोटा सिक्का लेने से मैंने इनकार नहीं किया। अब मैं भी एक खोटा सिक्का हूं; अब तेरे द्वार आ रहा हूं। मुझे इनकार मत कर देना! यह है निर-अहंकार भाव--मैं भी एक खोटा सिक्का हूं। परमात्मा के सामने तुम अहंकार लेकर जाओगे, तो जाओगे ही कैसे?
अहंकार तो पत्थर की दीवार की तरह तुम्हारे सामने खड़ा होगा। तुम परमात्मा को नहीं पा सकोगे। तुम तो वहां काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार को त्याग कर ही आगे जा पाओगे , तो ही परमात्मा से मिलन होगा । अहंकार को छोड़ो , क्योंकि अहंकार ही गर्मी है
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