Page Nav

HIDE

Followers

Breaking News:

latest

चारों धाम-29

दो संन्यासी युवक यात्रा करते-करते किसी गाँव में पहुँचे। लोगों से पूछा हमें एक रात्रि यहाँ रहना है किसी पवित्र परिवार का घर दिखाओ ।लोगों ने ब...

दो संन्यासी युवक यात्रा करते-करते किसी गाँव में पहुँचे। लोगों से पूछा हमें एक रात्रि यहाँ रहना है किसी पवित्र परिवार का घर दिखाओ ।लोगों ने बताया कि वहाँ एक चाचा का घर है। साधु-महात्माओं का आदर सत्कार करते हैं। दोनों संन्यासी वहाँ गये। चाचा ने प्रेम से सत्कार किया, भोजन कराया और रात्रि-विश्राम के लिए बिछौना दिया। रात्रि को कथा-वार्ता के दौरान एक संन्यासी ने प्रश्न किया कि आपने कितने तीर्थों में स्नान किया है ,कितनी तीर्थयात्राएँ की हैं। ?

हमने तो चारों धाम की तीन-तीन बार यात्रा की है।
चाचा ने कहा.. मैंने एक भी तीर्थ का दर्शन या स्नान नहीं किया है। यहीं रहकर भगवान का भजन करता हूँ और आप जैसे भगवत्स्वरूप अतिथि पधारते हैं तो सेवा करने का मौका पा लेता हूँ। अभी तक कहीं भी नहीं गया हूँ।

दोनों संन्यासी आपस में विचार करने लगे ,ऐसे व्यक्ति का अन्न खाया ! अब यहाँ से चले जायें तो रात्रि कहाँ बितायेंगे ? अगर ऐसे ही चले जायें तो उसको दुःख भी होगा। चलो, कैसे भी करके इस विचित्र वृद्ध के यहाँ रात्रि बिता दें। जिसने एक भी तीर्थ नहीं किया उसका अन्न खा लिया, हाय क्या अनर्थ हो गया हमसे ! आदि-आदि।

इस प्रकार विचारते हुए वे सोने लगे लेकिन नींद कैसे आऐ ! करवटें बदलते-बदलते मध्यरात्रि हुई। इतने में द्वार से बाहर देखा तो गौ के गोबर से लीपे हुए बरामदे में एक काली गाय आयी…. फिर दूसरी आयी…. तीसरी, चौथी…. पाँचवीं… ऐसा करते-करते कई गायें आयीं।

हरेक गाय वहाँ आती, बरामदे में लोटपोट होती और सफेद हो जाती तब अदृश्य हो जाती। ऐसी कितनी ही काली गायें आयीं और सफेद होकर विदा हो गयीं। दोनों संन्यासी फटी आँखों से देखते ही रह गये। वे दंग रह गये कि यह क्या हो रहा है !आखिरी गाय जाने की तैयारी में थी तो उन्होंने उसे प्रणाम करके पूछाः हे गौ माता ! आप कौन हो और यहाँ कैसे आना हुआ ? यहाँ आकर आप श्वेतवर्ण हो जाती हो इसमें क्या रहस्य है ? कृपा करके आपका परिचय दें।

गाय बोलने लगीः हम गायों के रूप में सब तीर्थ हैं। लोग हममें हर हर गंगे , हर हर यमुने ,हर हर नर्मदे आदि बोलकर गोता लगाते हैं। हममें अपने पाप धोकर पुण्यात्मा होकर जाते हैं और हम उनके पापों की कालिमा मिटाने के लिए द्वन्द्व-मोह से विनिर्मुक्त आत्मज्ञानी, आत्मा-परमात्मा में विश्रान्ति पाये हुए सत्पुरूषों के आँगन में आकर पवित्र हो जाती हैं।

हमारा काला बदन पुनः श्वेत हो जाता है। तुम लोग जिनको अशिक्षित, गँवार, बूढ़ा समझते हो वे बुजुर्ग के जहाँ से तमाम विद्याएँ निकलती हैं…. उस आत्मदेव में विश्रान्ति पाये हुए आत्मवेत्ता संत हैं। ऐसे महापुरुष जगत को तीर्थरूप बना देते हैं। अपनी दृष्टि से, संकल्प से, संग से जन-साधारण को उन्नत कर देते हैं। ऐसे पुरुष जहाँ ठहरते हैं, उस जगह को भी तीर्थ बना देते हैं।

विवेक विचार।

आप हवाई जहाज में बेफिक्र होके बैठते हैं जबकि आप पायलट को जानते तक नहीं। आप जहाज में बेफिक्र हो कर बैठते है जबकि आप केप्टन को जानते तक नहीँ। आप बस में भी बेफिक्र होकर सवारी करते हैं जबकि बस ड्राइवर को आप पहचानते तक नहीं। ट्रेन में भी आप बेफिक्र होकर यात्रा करते हैं जबकि मोटरमैन को आप जानते तक नहीं। फिर जिंदगी में आप बेफिक्र होकर क्यों नहीं रहते जबकि आप जानते हैं कि जिंदगी चलाने वाला भगवान हैं ।

No comments