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मूर्ति कार की कहानी -24

एक बार की बात है। एक गांव में एक मूर्तिकार रहता था। वह बहुत ही सूंदर मूर्ति बनता था। जिनको बेचकर वह अच्छे पैसे कमाता था। इस तरह वह अपने परिव...

एक बार की बात है। एक गांव में एक मूर्तिकार रहता था। वह बहुत ही सूंदर मूर्ति बनता था। जिनको बेचकर वह अच्छे पैसे कमाता था। इस तरह वह अपने परिवार का गुजारा कर रहा था। कुछ समय बाद उसका लड़का हुआ। मूर्तिकार का लड़का बचपन से ही अपने पिता को देखकर मूर्ति बनाने लगा। बड़े होने के साथ साथ वह अपने पिता के सहयोग से अच्छी मूर्तियाँ बनाने लगा।

लेकिन मूर्तिकार फिर भी अपने लड़के की मूर्तियों में कुछ न कुछ कमी बताकर उसको ठीक करने को बोलने लगा। लड़का अपने पिता की बात मानकर उन कमियों को दूर करने लगा। कुछ समय बाद लड़के की मूर्ति अपने पिता से भी अच्छी हो गयी और उसको मूर्तियों के दाम भी अपने पिता से ज्यादा मिलने लगे।

इसके बाद भी जब लड़का मूर्तियाँ बनाता उसका पिता कुछ न कुछ गलती बताता था। लड़के को यह बात अच्छी नहीं लगी और उसने अपने पिता को कह दिया कि मेरी मूर्तिया आपसे अच्छी है। इसलिए मुझको आपकी मूर्तियों से ज्यादा दाम मिलते है। अब मेरी मूर्तियों में कोई कमी नहीं है। यह कहकर लड़का चला गया।

कुछ महीनो के बाद लड़के की मूर्तियों के दाम कम हो गए और उसको सामान्य दाम मिलने लगे । इसके बाद वह एक दिन अपने पिता के पास गया और उसने सारी बात बताई। लड़के की बात पिता आराम से सुन रहा था। लड़के ने अपने पिता से सवाल किया कि आप तो ऐसे बर्ताव कर रहे है जैसे आपको यह सब पता हो। उसके पिता ने कहा हा मुझे पता था ऐसा होने वाला है।

यह सब मेरे साथ भी हो चूका है। जब मै तुमको तुम्हारी मूर्तियों में कोई गलती बताता था तो तुम अपनी मूर्तियों पर और मेहनत करते थे। जिससे तुम्हारी मूर्तियों में हर बार सुधार होता था। लेकिन जब तुमने अपनी मूर्तियों को सर्वश्रेष्ठ समझ कर उनमे सुधार करना बंद कर दिया तो वह सामान्य हो गयी। यह बात अब लड़के को समझ आ चुकी थी। वह अपने पिता को धन्यवाद करके दुबारा अपनी मूर्तियों में लगातार सुधार करने लगा। इससे उसकी और ज्यादा कमाई होने लगी । इसलिए हमे अपने काम मे लगातार सुधार चाहिए

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