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ईमानदार भिखारी -9

एक बार बजार में किसी का बटुआ गिर गया ,जो एक भिखारी को मिला । बटुआ खोलने पर भिखारी ने पाया कि उसमे 100 स्वर्णमुद्राएं थी । तभी भिखारी ने एक...

एक बार बजार में किसी का बटुआ गिर गया ,जो एक भिखारी को मिला । बटुआ खोलने पर भिखारी ने पाया कि उसमे 100 स्वर्णमुद्राएं थी । तभी भिखारी ने एक व्यपारी को चिलाते हुए सुना , जो कह रहा था , मेरा बटुआ खो गया है । जो ढूंढ कर देगा मैं उसे इनाम दूंगा । 

भिखारी ईमानदार इंसान था वह व्यपारी के पास गया और उसे बटुआ वापिस करके अपना इनाम मांगा । व्यपारी बोला कैसा ? व्यपारी जल्दी जल्दी स्वर्ण मुद्रयाए गिनता हुआ बोला । तुझे इनाम नहीं तुझे तो मैं पूलिस में दूंगा । इस बटुए में 200 स्वर्ण मुद्रयाए थी तू पहले ही इसमे से 100 मुद्रयाए चुरा चुका है । तेरा इनाम कैसा ?

भिखरी बोला ईमानदार आदमी हूँ चोर नहीं । भिखारी बहादुरी से बोला , चलिए मैं खुद ही राज दरवार में चलता हूँ । महाराज ही इसका न्याय करेंगे । 

दोनों राजदरबार में पहुंचे और वहाँ जाकर अपनी - अपनी बात राजा को सुनाई । सारी बात सुन कर महाराज ने अपने मंत्री को कहा कि अब तुम ही इसका फैसला करो । मंत्री ने कहा जैसी आपकी आज्ञा महाराज । थोड़ी देर बाद मंत्री ने कहा , महाराज मेरे विचार से ये दोनों ही सच बोल रहे है । व्यपारी तुमने कहा कि तुम्हारे बटुए में 200 स्वर्ण मुद्राय थी , जब कि इस बटुए में मात्र 100 स्वर्ण मुद्रयाए ही है । भिखारी इतनी जल्दी स्वर्ण मुद्रयाए कही छुपा नहीं सकता और वह भी गिन कर पूरी 100। 

तो मेरे विचार में यह बटुआ ही तुम्हारा नहीं है । महाराज ने मंत्री के फैसले को सही ठहराते हुए 100 स्वर्ण मुद्राओ से भरा बटुआ भिखारी को सौंप दिया । इसलिए किसी के गरीब होने का कभी भी मजाक न करे , और न ही उसे दुखी करे । हमेशा भगवान को याद करे और सदा खुश रहे । 

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