संजीव अपने गाव का इकलोता पढ़ा - लिखा लड़का था और नोकरी कि तलाश में शहर को जा रहा था । वह एक ट्रेन में बेठ कर जा रहा था , कुछ टाइम बाद...
फिर भी वह खाना खाए जा रहा था । यह सब देख कर पास बैठे लोग भी सोच में पड़ गए । कि इसके टिफिन में कुछ भी नहीं है फिर भी उसमे रोटी डुबो कर खाए जा रहा है । तब उसके पास बैठे एक आदमी ने उस से पूछ ही लिया , कि भाई आपके टिफिन में तो कुछ भी नहीं है , फिर भी आप उसमे रोटी डुबो कर खा रहे हो । तो इस पर संजीव ने बोला कि मुझको भी पता है कि मेरे टिफिन में कुछ नहीं है । लेकिन मैं उसमे आचार समझ कर खा रहा था । तो इस पर आदमी ने बोला कि आपको आचार का टेस्ट आ रहा था । तो संजीव ने बोला हा , आप जैसा सोचेंगे वैसा ही आप को महसूस होगा ।
मैं आचार समझ कर खा रहा था तो मुझको उसी का टेस्ट आ रहा था । इस पर आदमी ने जबाब दिया कि आप को सोच कर ही खाना है तो पनीर सोचो , दाल सोचो , मतलब कि जब आप सोच ही रहे है तो कुछ बड़ा ही सोचो । छोटा क्यों सोचो । यह सोच कर संजीव की आँखों में बहुत ही गंभीरता थी और वह अब यह समझ चुका था कि जिन्दगी में जो सोचो बड़ा ही सोचो ।
दोस्तों इसी तरह हमारी जिन्दगी में भी होता है कि हम लोग छोटे से काम के पीछे परेशान रहते है , लेकिन कुछ आप को करना है तो बडा करो । हो सकता है शुरुआत में आपको सफलता कम मिले लेकिन बाद में आप को बहुत ही अच्छा रिजल्ट मिलेगा । हमेशा हस्ते मुसुकुराते रहे ।
जाकी रही भावना जैसी
ReplyDeleteतीन पाई हरि मूरत वैसी
जय जय सियाराम
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