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बड़ी सोच -6

  संजीव  अपने गाव का इकलोता  पढ़ा - लिखा लड़का  था और नोकरी कि तलाश में  शहर  को जा  रहा था । वह एक ट्रेन में बेठ  कर जा रहा था , कुछ टाइम बाद...

 

संजीव  अपने गाव का इकलोता  पढ़ा - लिखा लड़का  था और नोकरी कि तलाश में  शहर  को जा  रहा था । वह एक ट्रेन में बेठ  कर जा रहा था , कुछ टाइम बाद शांम  हो गई और वह अपने साथ रोटिया खाने के लिए ले गया था । जब  सभी लोग खाना  खा  रहे थे तो संजीव ने भी सोचा  मैं भी खाना  खा लूँ , पर वो शर्मा रहा था क्योंकि उसके पास सब्जी नहीं थी सिर्फ सुखी रोटिया ही थी ।  थोड़ी देर बाद उसने अपना टिफिन खोला और खाना  शुरू कर दिया । वह अपनी रोटी को टिफिन में डूबा कर खाने लगा , जब की उसके टिफिन में कुछ भी नहीं था । 

फिर भी वह खाना खाए जा रहा था । यह सब देख कर पास बैठे लोग भी सोच में पड़  गए । कि इसके टिफिन में कुछ भी नहीं है फिर भी उसमे रोटी डुबो कर खाए जा रहा है । तब उसके पास बैठे एक आदमी ने उस से पूछ ही लिया , कि भाई आपके टिफिन में तो कुछ भी नहीं है , फिर भी आप उसमे रोटी डुबो कर खा रहे हो ।  तो इस पर  संजीव  ने बोला कि मुझको भी  पता है कि मेरे टिफिन में कुछ नहीं है । लेकिन मैं उसमे  आचार समझ कर खा रहा था । तो  इस पर आदमी  ने बोला कि आपको आचार का टेस्ट आ रहा था । तो संजीव ने बोला हा , आप जैसा सोचेंगे वैसा ही आप को महसूस होगा । 

मैं आचार समझ कर खा रहा था तो मुझको उसी का टेस्ट आ रहा था । इस पर आदमी  ने  जबाब  दिया कि आप को सोच कर ही खाना है तो  पनीर सोचो , दाल  सोचो , मतलब कि जब आप सोच ही रहे है तो कुछ बड़ा ही सोचो । छोटा क्यों सोचो । यह सोच कर संजीव की आँखों में बहुत ही गंभीरता थी और वह अब यह समझ चुका था कि  जिन्दगी में जो सोचो बड़ा  ही सोचो । 

दोस्तों  इसी तरह हमारी जिन्दगी में भी होता है कि हम लोग छोटे से काम के  पीछे परेशान रहते है , लेकिन कुछ आप को करना है तो बडा करो । हो सकता है शुरुआत में आपको सफलता कम  मिले लेकिन बाद में आप को बहुत ही अच्छा रिजल्ट मिलेगा । हमेशा हस्ते मुसुकुराते रहे । 

http://www.khushikepal.com/

1 comment

  1. जाकी रही भावना जैसी
    तीन पाई हरि मूरत वैसी
    जय जय सियाराम
    🌹🙏🙏🌹🚩

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