एक विधवा औरत थी। लेकिन उसे सज धज कर रहना बहुत पसंद था। वह बिंदी के सिवाय सब कुछ लगाती थी। पूरी कॉलोनी में उनके चर्चे थे। उनका एक बेटा भी था...
वह बहुत फेशन नेबल थी। बॉय कटिंग रखती थी। सभी कालोनी की आंटियां उन्हें पतंगी कहती थी। शाम भी उस समय नया नया जवान हुआ था। अभी 16 साल का ही था। लेकिन घर बसाने के सपने देखने शुरू कर दिए थे। शाम का आधा दिन आईने के सामने गुजरता था और बाकि आधा पतंगी आंटी की गली के चक्कर काटने में। शाम का नवव्यस्क मस्तिष्क इस मामले में काम नहीं करता था कि समाज क्या कहेगा? यदि उसके दिल की बात किसी को मालूम हो गई तो? उसे किसी की परवाह नहीं थी। पतंगी आंटी को दिन में एक बार देखना उसका जूनून था।
उस दिन बारिश बहुत हुई थी। शाम स्कूल से लौट रहा था। रास्ते में बहुत कीचड़ था। जिसकी बजह से शाम की साईकल उस कीचड़ में फिसल गई। और उसी वक्त सामने से आ रहे स्कूटर ने भी साईकल से टक्कर मार दी। शाम का सर मानो खुल गया हो। खून का फव्वारा फूटा। शाम दर्द से ज्यादा इस घटना के झटके से स्तब्ध था। वह गुम सा हो गया। भीड़ में से कोई उसकी सहायता को आगे नहीं आ रहा था। खून लगातार बह रहा था।
तभी एक जानी पहचानी आवाज शाम नाम पुकारती है। शाम की धुंधली हुई दृष्टि देखती है किपतंगी आंटी भीड़ को चीर पागलों की तरह दौड़ती हुई आ रही थी। पतंगी आंटी ने शाम का सिर गोद में लेते ही उसका माथा जहाँ से खून बह रहा था उसे अपनी हथेली से दबा लिया। आंटी की रंगीन ड्रेस खून से लथपथ हो गई थी। आंटी चिल्ला रही थी अरे कोई तो सहायता करो यह मेरा बेटा है कोई हॉस्पिटल ले चलो हमें। आंटी ने अब भी उसका माथा पकड़ा हुआ था। उसे सीने से लगाया हुआ था।
शाम को टांके लगा कर घर भेज दिया जाता है। आंटी ही उसे रिक्शा में घर लेकर जाती हैं। शाम अब ठीकहै। लेकिन एक पहेली उसे समझ नहीं आई कि उसकी वासना कहाँ लुप्त हो गई थी। जब आंटी ने उसे सीने से लगाया तो उसे ऐसा क्यों लगा कि उसकी माँ ने उसे गोद में ले लिया हो। वात्सल्य की भावना कहाँ से आई। उसका दृष्टिकोण कैसे एक क्षण में बदल गया। क्यों वह अब मातृत्व के शुद्ध भाव से आंटी को देखता था।
आज शाम एक रिटायर्ड अफसर है। समय बिताने के लिए कम्युनिटी पार्क में जाता है। वहां बैठा वो आज सुन्दरऔरतों को पार्क में व्यायाम करते देख कर मुस्कुराता है। क्योंकि उसने एक बड़ी पहेली बचपन में हल कर ली थी। वो आज जानता है, मानता है, और कई लेख भी लिख चुका है कि महिलाओं का मूल भाव मातृत्व का है। वो चाहें कितनी भी अप्सरासी दिखें दिल से हर महिला एक 'माँ' है। वह 'माँ' सिर्फ अपने बच्चे के लिए ही नहीं है। वो हर एक लाचार में अपनी औलाद को देखती है। दुनिया के हर छोटे मोटे दुःख को एक महिला दस गुणा महसूस करती है क्योंकि वह स्वतः ही कल्पना कर बैठती है कि अगर यह मेरे बेटे या बेटी के साथ हो जाता तो? इस कल्पना मात्र से ही उसकी रूह सिहर उठती है। वो रो पड़ती है। और दुनिया को लगता है कि महिला कमजोर है। शाम मुस्कुराता है, मन ही मन कहता है कि हे विश्व के सभी मर्दो आज एक बात समझ लो। औरत दिल से कमजोर नहीं होती, वो तो बस 'माँ' होती है। जिसका दिल पिघल जाता हैं ।
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